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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=दिनकर|संग्रह=}} वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नही है<br>थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर् नही है<br>चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से<br>चमक रहे पीछे मुड् देखो चरण-चिनह् जगमग से<br>बाकी होश तभी तक , जब तक जलता तूर् नही है<br>थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर् नही है<br>
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