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राष्ट्रभाषा की समस्या पर राष्ट्रकवि दिनकरजी का हृदय बहुत चिंतित था। उन्होंने इस विषय पर दो पुस्तकें लिखी हैं। 'राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता' तथा 'राष्ट्रभाषा आंदोलन और गाँधीजी।' दिनकर का कथन है कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा इसलिए माना गया कि केवल वही भारत की सांस्कृतिक एकता व राजनीतिक अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने में समर्थ है।
'संस्कृति के चार अध्याय' एक ऐसा विशद, गंभीर खोजपूर्ण ग्रंथ है, जो दिनकरजी को महान दार्शनिक गद्यकार के रूप में प्रतिष्ठित करता है। अध्यात्म, प्रेम, धर्म, अहिंसा, दया, सहअस्तित्व आदि भारतीय संस्कृति के विशिष्ट गुण हैं।