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{{KKRachna
| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
}}
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हिज़्र के सवाल पे बवाल कम नहीं हुआ
चुप रहे भले मग़र मलाल कम नहीं हुआ I
दोस्तों ने डाल दी कबा-ए-ख़ार , हाय रे
ज़िन्दगी-सराय में कमाल कम नहीं हुआ I
इस तरह लगाव था कि सिर कटे को देखकर
धड़ पकड़ लिया गया उछाल कम नहीं हुआ I
सोचते रहे निज़ात किस तरह मिले मग़र
दिन-ब-दिन बढ़ा किया ये जाल कम नहीं हुआ
</poem>
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| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
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हिज़्र के सवाल पे बवाल कम नहीं हुआ
चुप रहे भले मग़र मलाल कम नहीं हुआ I
दोस्तों ने डाल दी कबा-ए-ख़ार , हाय रे
ज़िन्दगी-सराय में कमाल कम नहीं हुआ I
इस तरह लगाव था कि सिर कटे को देखकर
धड़ पकड़ लिया गया उछाल कम नहीं हुआ I
सोचते रहे निज़ात किस तरह मिले मग़र
दिन-ब-दिन बढ़ा किया ये जाल कम नहीं हुआ
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