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Kavita Kosh से
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जितना-जितना बहरा होता जाता हूँ
उतना-उतना गहरा होता जाता हूँ I
देख -देख कर बच्चों की अठखेली कोमैं , दरिया से सहरा होता जाता हूँ I
माज़ी , दिल पे बोझ बढ़ाए जाता हैसर से पा तक दुहरा होता जाता हूँ I
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