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|सारणी=ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ती
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<span class="upnishad_mantra">
विद्यां चाविद्यां च यस्तद वेदोभयम सह।<br>
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते ॥११॥<br>
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<span class="mantra_translation">
उसी ज्ञान कर्म विधान पथ से, मिल सके परब्रह्म से,<br>
एक मात्र निश्चय पथ यही, है जो मिलाता अगम्य से॥ [११]<br><br>
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:::अन्धं तमः प्रविशन्ति ये सम्भूतिमुपासते।<br>
:::ततो भूय इव ते तमो य उ संभूत्या रताः ॥१२॥<br>
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:::जिसे ब्रह्म अविनाशी की पूजा, भाव का अभिमान है,<br>
:::वे जन्म मृत्यु के सघन तम में, विचरते हैं विधान है॥ [१२]<br><br>
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अन्यदेवाहुः संभवादन्यदाहुरसंभवात।<br>
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद विचचिक्षिरे ॥१३॥<br>
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जो देव ब्राह्मण, पितर, आचार्यों की निस्पृह भाव से,<br>
अर्चना करते वे मुक्ति पाते पुण्य प्रभाव से॥ [१३] <br><br>
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:::संभूतिं च विनाशं च यस्तद वेदोभयम सह।<br>
:::विनाशेन मृत्युम तीर्त्वा सम्भुत्या मृतमश्नुते ॥१४॥<br>
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:::जिन्हें मरण धर्मा देवता का, मर्म ही मंतव्य है,<br>
:::निष्काम वृति से विमल मन और कर्म ही गंतव्य है॥ [१४]<br><br>
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हिरण्यमयेंन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखं।<br>
तत्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय द्रृष्टये ॥१५॥<br>
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