भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
12 bytes added,
21:57, 20 अक्टूबर 2016
{{KKCatKavita}}
<poem>
छूट गिरफ्त बादलों की सूरजबैचैन रौशनी फैलाने कोबदली धरती मौसम बदलाबदल नभ वायु जल भी तो करते हैं श्रमगन्दलारिमझिम बूँदें बरसाने कोकट जंगल बने ऊँची इमारतधरा आतुर सीने पर अपनेकरें कृषक नौकरी की हिमायतफसल हरी उगाने कोधूप ही धूप छाँव कहीं नानभ टंकरित करता मुश्किल हो गया है ध्वनिजीनाऊर्जा देती हमको अग्निबुढा गयी सृष्टि की कायाजल से सबको प्राप्त जीवनकैसा यह बदलाव है आया?करे प्राणों का संचार पवनकरता न कुछ भी अभिभूतइंसान ,जानवर, पेड़ -पौधे सारेहुई छटा पृथ्वी से विलुप्तगृह –उपग्रह, चाँद और तारेसंकर बीज संकर ही नस्लेंकरें कर्म निरंतर ,निर्धारित हदकृत्रिम वातावरण कृत्रिम ही फसलेंजुटे रहते करने को पूराकर छेड़छाड़ प्रकृति से क्या पाया?अपने होने का मकसदअमृत देकर जहर कमायाकैसा यह बदलाव है आया?
</poem>