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रेती की रात / अजित बरुवा

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'''शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल असमिया से अनूदित'''
 
अनुवादक की टिप्पणी : अजित बरुवा (१९२६-२०१५) का नाम लिए बिना आधुनिक असमिया कविता की कहानी पूरी नहीं होती। जहाँ तक मुझे याद है, नाम भी उनका भारी-भरकम था - अजित मल्ल बरुवा, पर हर जगह अजित बरुवा ही लिखा मिला। यह कविता १९६३ की है। एलियट जैसे उद्धरण संकेत (allusion) इस कविता में हैं । पहला उद्धरण ," अग्नि, मेरे बन्धु..." सेंट फ़्रंसिस ऑफ़ ऐसिसी का है। उन दिनों में (१२वीं शती) आग का इस्तेमाल शल्य क्रिया में संक्रमण रोकने के लिए होता था। कहते हैं कि इस प्रार्थना के बाद आग से उन्हें इतना कष्ट नहीं हुआ। बाक़ी के दोनों उद्धरण उस समय प्रचलित असमिया गानों के लग रहे हैं। सुवनशिरी नदी ब्रह्मपुत्र की ट्रिब्यूटरी है। शीर्षक का "जेंग्राइ" संभवत: मिसिंग जनजाति के गाँव का नाम है। लिलिमाई एक काल्पनिक लड़की है जो बहुत से गानों में प्रकट होती है। बीच में " हिलोर फूटी बास..." बच्चों के गीत-जैसी दो पंक्तियाँ है जिनका अनुवाद बच्चों के गीत की तरह ही किया है।
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