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सत ले बड़े धरम, परमारथ ले बड़े करम, धरती बड़े सरग अउ मनुख ले बड़े चतुरा भला कउन हे । हे। संसारी जमो जीव मन म सुख अउ सांति के सार मरम अउ जतन ल मनखे के अलावा समंगल कउनो आने नइ जानय । जानय। तभो ले बिरथा मिरिगतिस्ना म फंसे कइयन मनखे फोकटिहा ठग-फुसारी, चारी-चुगरी, झूठ-लबारी,लोभ-लंगड़, लूटा-पुदगी, भागा-भागी,मारा-मारी के पीछू हलाकान, हाँव-हाँव अउ काँव-काँव म जिनगी ल डारे कउआत रथें । रथें। सब जानत अउ सुनत हें संतोस ले बड़े दौलत अउ कउनो नइ हे, तभे तो निरजन बीहर, डोंगरी-पहरी म घलव रहिके मनखे डब-डब ले सुख अउ सांति म भरे रथें । रथें। दूसर कति महल अटारी,सोन-चांदी, घोड़ा-गाड़ी, सेज-सुपेती के बीच परे मनखे असकटावत अउ छटपटावत रथें ।रथें।
जब मनखे सिरिफ अपनेच बाहिर देस-दुनिया के बिस्तार करे के नाव म अपन असली जर अउ जमीन ले दुरिहाये लगथे ओला बिसराये लगथे अउ सरग बर गोड़ लमाये के जतन करे लगथे तव ये खचित जानव के ओ ह रावन रावण कस अपन सोनहा लंका के बिनास कराय के उदिम करे लगथे । लगथे। तभे तो ये ह सोरा आना सच लगथे के-
डार के चुके बेंदरा – मउका बेंदरा–मउका चुके किसान ।मूर ले चुके जीव के -कहां भला कइलान ।किसान।
उत्तम साहित्य के सिरजइया न अगास म बसंय, न अगास के उन बात कहंय। येेही संसार म रहिके चारो कति बगरे जिनगी अउ दुनिया के संग ओकर नता-गोता के हियाव करथें। येकर खातिर उनला बरोबर लोकाचार, लोक-बेवहार अउ लोक के हिरदे के धड़कब घलव ल चेत लगा के सुने अउ जाने परथे। इंकर बिसय म कुछ लिखब घलव ह निचट सहज नोहय। ये ह कांटा-खुंटी, उरभट-खुरभट, चिखला-कांदो, पानी-पूरा अउ आगी-अंगरा म चलब कस जनव कठिन बुता आय। `गाँव कहाँ सोरियावत हें’ हें'सीरसक के कविता म कोइली के कलपब अउ मैना के बिलपब ह कवि के बिरथा सबदजाल गढ़ब नोहय । नोहय। समे, समे के बदलाव ओकर सरूप अउ ओकर परभाव के अंदरोनी जियान के ये ह परगट परमान आय । आय। `सोरियावब’ सोरियावब' सबद ह सफा-सफा कुछ भुलाये-बिसराये, लुकाये-छुपाये अउ नंदाये-गंवाये जिनिस के खोज खबर लेहे कति संकेत करथे । करथे। आज हमर सबके समुंहे ये सवाल खड़े हे के का गाँव सिरतों गंवावत हें ? बस ! ये सवाल के जवाब अउ निरनय के संग एकर असली समाधान सरेखे के परयास अउ उदिम करे के बिनती संग ए कविता किताब गुनवान, बिद्वान,पढ़इया, समझइया मन के हाथ सउंपत हावंव । हावंव। ये आस म के इन चार लकीर के मरम खातिर घलव बिचार करहीं –करहीं–
देस के जम्मो गांव म-जउन घटत हें रोज
अवइया दिन बर करहीं-चतुरा सबके खोज। रहब बसब करनी-कथनी-नेम-धेम अउ न्याव सत-इमान मरजाद बिन-गाँव कहाँ के गाँव? संसार कागद के पुड़िया ये, माटी के ढेला ये, लइकन के घरघुंदिया ये अइसनहे अउ कतको पटंतर हवंय एकर सिरजब अउ बिनास बर, बनब अउ बदलाव बर । बर। तभे तो घुरुवा ह मंदिर, मरघट ह महल अउ पहार घलव ह खोधरा म देखते देखत लहुट जाथे । जाथे। येही ह तो ये दुनिया के परकीरति आय । आय। कथें के –के– जेकर जरय भांटा–तउन रितोवय पानी।
साहित्य के सबले बड़े बुता आय देस-दुनिया समाज अउ मनुख ल जगावब, चेतावब, बतावब अउ डहर देखावब । देखावब। इहां बिलग-बिलग परसंग म आनी-बानी के बिसय अउ उंकर चरचा ल सबद म ढारे के बरोबर जतन होय हावय । हावय। तभो ले संपूरन अउ समंगल कहे के परमान देवब ह अपन कमती बुद्धि के बोध करावब होहय । होहय। `गाँव कहां कहाँ सोरियावत हें’ हें' कविता के भीतर के जमो बात सिरतो कहंव तव मोर आंखी के परखे अउ कान के ओरखे कस लगथें । लगथें। हां ! बिसयबस्तु अउ परसंग ल सफा-सफा कहे के बिबसता म कहंु कुछ कम जादा हो सकत हें । हें। सब कुछ गुरतुरहा कहे के जतन म कुछ सिट्ठा,अम्मठ अउ करुकसा होवब घलव ह बिलकुल अकारन नोहय । नोहय। सबके गुन अउ धरम ल जस के तस निमेर अउ पछिन के चतुरा मन सकेलहीं अउ समोखहीं अइसन पूरा बिसवास हावय ।हावय।
जमो साहित्यकार,सुधिजन, बुधिजन अउ गुनिजन मन ले सनमान सहित अनुनय अउ बिनय हावय के `गांव कहां कहाँ सोरियावत हें ‘ 'पढ़ के अपन सोच अउ बिचार ल आसीरबाद के रुप रूप म भेजे के जतन जरुर करहीं । ज़रूर करहीं। परमहितवा भासाविग्यानी डॉ. डॉ। चित्तरंजनकर जी के गजब अभारी हवंव जउन `गांव रहे ले दुनिया रइही’ रइही' सीरसक ले किताब के `भूमिका’ भूमिका'लिखे के किरपा करके येकर मोल ल बढ़ाये म सहजोग देवब के उपकार करे हावंय । हावंय। छेवर म मोर जमो उन अतमा-परतमा, हित-मीत, संगी-जंवरिहा मनके संग बिद्वानन के घलव जबर अभारी हवंव जउन मन पीछू दू बरिख ले `गाँव कहां कहाँ सोरियावत हें’ हें' के रचना बहुत मया अउ दुलार के संग सुनय सराहंय अउ आसीरबाद देवंय । देवंय। आज किताब सबके हाथ म सउंपत घरी मया दुलार संग आसीरवाद के मन म अउ जादा लालसा बाढ़त हावय ।हावय।
बुधराम यादव
एकादसी, कातिक सुक्ल, 2010
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