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इश्तहार में लड़की / डी. एम. मिश्र
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11:31, 1 जनवरी 2017
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<poem>
इश्तहार में लड़की
ख़ामोश-शान्त
असुरक्षित लड़की
ठंडा जिस्म
आग पेट में भड़की
रंग-बिरंगे नकली साबुन के
स्टाल पर श्वेत झाग में लिपटी
ओठों पर कृत्रिम मुस्कान
भीतर आह भरी
ब्यूटीक्रीम-कोलगेट में
चाकलेट में पेट अदृश्य
चेहरे की नीचे नाभि
दूर तक ऑच
आँख पर रेपर
घटिया चीज़ें उठीं
दाम पर ऊँचे
चीज़ों में वह चीज़
नंगी दीवारों को ढँकती
कहीं हार्स पावर के आगे
कहीं एड्स से
जंग छेड़ती
बीच सड़क पर खुले आम
कण्डोम बेचती
</poem>
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