भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
झोंपड़ी में हों या हवेली में
सभी उलझे किसी पहेली में।
है कोई पढ़ के जो बता देता
क्या लिखा है मेरी हथेली में।
 
भूखे बच्चों को कैसे बहलाऊँ
चार दाने तो हों पतेली में।
 
ख़ुद को मुखिया वो गाँव का कहता
जहर देता है गुड़ की भेली में।
 
जि‍दगी की क़िताब पढ़ न सका
चुक गयी उम्र ही अठखेली में।
 
उसकी ख़ुशबू कहाँ तलाश करूँ
वो न बेला न वो चमेली में।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits