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15:05, 4 जनवरी 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= रामकिशोर दाहिया
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<poem>
मैं पीतल औरों का
चिन्तन
मुझे बनाए सोना
मैं तो केवल
चाह रहा हूँ
अपने जैसा होना
अबके साल समय में
पल-पल
घर के अर्थ बदलते
देने वाले
हाथ काटते
बैशाखी को चलते
फल के भी हैं
अन्दर काँटे
परिणामों का रोना
पाँवों के नीचे
की धरती
पकड़े पर भी सरके
खड़े देखते
रहे तमाशे
अँगना, देहरी, फरके
भित्तियों से
करवाती छानी
मुझ पर जादू-टोना
मैंने उलटी
दिशा चुनी है
पद चिह्नों से हटकर
हवा रोकती
बढ़ना मेरा
स्वर लहरी को रटकर
केवल कोरे
आदर्शों को
कन्धों पर क्या ढोना
</poem>