भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नेपाली मन छन कती घमन्डी -कतै दु:ख कांही ह्युस्की बरान्डी ।।
----------------------------------------------------------------
 
कोही झुप्रोमा खोले छैन - कतै भोज भातेर छ -
सधैं धन को पछी कुद्ने - जन ले कसलाइ टेर्छ -
बिर्सि सक्यौ आफन्त पनि - सबै भन्दा ठुलो हो धन भनी ।।
----------------------------------------------------------------
 
आफ्नै बिचार उचित ठान्ने- मै राम्रो हुँ भन्ने -
धन र बलको घमन्डले -कोही कसलाइ न गन्ने -
जनता लाई नगर हेलां -छेउको सियो माझैमा कोही बेला ।।
----------------------------------------------------------------
 
गरिविले सिमै नाघ्यो -उर्ल्यो मंगाइ झनै -
तस्करलाई कन्ट्रोल गर्ने -छैन सिस्टम कुनै -
कस्ता सासक परेछौ कुन्नी - जन आवाज कोही पनि नसुन्ने ।।
----------------------------------------------------------------
 
कोही भन्छन जनतन्त्र -कतै मधेस हाम्रो -
कोही भन्छन पार्टी राम्रो -कोही जाती हाम्रो -
भात्काउन लाई सजिलै भयो -नया नेपाल बनाउन धौ भयो ।।
----------------------------------------------------------------
 
कतै बन्दुक मुसार्दै छन - संझौताको सान्ती -
न कोही कसको मलामी त-न कोही कसको जन्ती-
ढुङ्गा टोक्ने मन रैछ तिम्रो-गाई लाई पराल भैंसिलाइ कुटिम्रो ।।
----------------------------------------------------------------
 
कोही कतै च्याउ छोडेर-घिउ भात खाने भय -
चर्का नारा बेतुक संझी -धेरै मुग्लान गय -
कुत्ता सरि यक बार को जूनी फ्याम्ली संग भेट कहिलेइ नहुने ।।
----------------------------------------------------------------
 
घिउ खानेको हातको लगाम -गाइ खानेको हातमा -
नयाँ नेपाल बनाउने रे - कौडी छैन साथमा -
Mover, Reupload, Uploader
10,372
edits