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{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
अचानक ही उतरता हो
तुम्हारे आंगन में
अजनबी कोई परिंदा
और सहज स्वीकार कर लेता हो
तुम्हारे हाथ का दाना-पानी

तो समझ लो
कि समझ में आने लगी है
अब तुम्हें भी
ग़ैब की भाषा…