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काश! कभी / श्वेता राय

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गीत नही समझो इनको, ये मेरे मन के मीत हैं। काश! कभी ऐसा होता कि हम तुमको अपना कह लेते
चटक फागुनी रंग लिये कभीयाद तुम्हारी वनफूलों सीशरद सा सकुचाते हैंमहकाती है अंतर्मन कोगर्मी का आतप दिखे कभीभावों की कोमल अंगड़ाईसावन सा लहराते हैंबहकाती है कोमल तन कोमौसम के आने जाने का दिखलाते ये रीत हैंकाश! कभी अपनी पलकों से हम तेरा अर्चन कर लेतेगीत नही समझो इनको ये मेरे मन के मीत हैंकाश! कभी ऐसा होता कि हम तुमको अपना कह लेते
माटी तेरी साँसों की है गंध कभी तोवीणा परचूल्हे की है आग भीसजना चाहूँ सरगम बनकरचिड़ियों की चहचह है इसमेंतेरे अंतस के आँगन मेंरुनझुन पायल राग भीबसना चाहूँ धड़कन बनकरजग में बहते जीवन का ये सुनवाते संगीत हैंकाश! कभी मेरे सपनोँ को तुम अपना अवलम्बन देतेगीत नही समझो इनको ये मेरे मन के मीत हैंकाश! कभी ऐसा होता कि हम तुमको अपना कह लेते
हँसी लिए कभी भाभी मेरे सपनोँ की तोनियति ज्यूँकभी सास फटकार हैलहरों का तट से टकरानाचाँद रात मनुहार पिया कभीहरपल टूटे पागल मन सेकनखी साजन प्यार हैतेरे छल को प्रीत बतानानैनों से मिल नैनों काश! कभी मेरी बाँहों में ही रचवाते ये प्रीत हैंतुम अपना सब अर्पण करतेगीत नही समझो इनको ये मेरे मन के मीत हैं। काश! कभी ऐसा होता कि हम तुमको अपना कह लेते...
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