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Kavita Kosh से
मधुर रूप सपनों में आया।
बीते वर्ष, बवंडर बवण्डर आए
हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने,
भूला वाणी, स्वर पहचाने।
पलक आत्मा ने फिर खोली
फिर तुम मेरे सम्मखु सम्मुख आईं,
निर्मल, निश्छल रूप छटा-सी
मानो उड़ती-सी परछाईं।