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::भारत सुत खेलत होरी ।।होरी॥प्रथम अविद्या अगिनी बारिकै, सर्वसु फूँकि दियो री ।री।आलस बस पुरिखन के जस की, चूरि उड़ाइ बहोरी ।बहोरी।::रंग सब भंग कियो री ।।री॥छकै परस्पर बैर बारुणी, सबको ज्ञान गयो री ।री।घरन-घरन भाइन-भाइन में, जूता उछरि रह्यो री ।री।::बकैं सब आपस में फोरी ।।फोरी॥बड़े-बड़े बीरन के वंशज, बनि बैठे सब गोरी ।गोरी।नाचि रिझावत परदेसिन को, लाज नहीं तनको री ।री।::जु ले लहँगौ कौ छोरी ।।छोरी॥निज करतूत भयो मुख कारो, ताको सोच तज्यो री ।री।देखो यह परताप कुमति को, दुख में सुख समझ्यो री ।री।::निलज सब देश भयो री ।।री॥
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