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|रचनाकार=गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
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कठिन है परीक्षा न रहने क़सर दो,
न अन्याय के आगे तुम झुकने सर दो ।दो।
गँवाओ न गौरव नए भाव भर दो,
हुई जाति बेपर है तुम इसको पर दो ।।दो॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
मानते हो घर-घर ख़िलाफ़त का मातम,
अभी दिल में ताज़ा है पंजाब का ग़म ।ग़म।
तुम्हें देखता है ख़ुदा और आलम,
यही ऐसे ज़ख़्मों का है एक मरहम
असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
किसी से तुम्हारी जो पटती नहीं है,
उधर नींद उसकी उचटती नहीं है ।है।
अहम्मन्यता उसकी घटती नहीं है,
रुदन सुन के भी छाती फटती नहीं है ।है। असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
बड़े नाज़ों से जिनको माँओं ने पाला,
बनाए गए मौत के वे निवाला ।निवाला।
नहीं याद क्या बाग़े जलियाँवाला,
गए भूल क्या दाग़े जलियाँवाला ।जलियाँवाला। असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
ग़ुलामी में क्यों वक़्त तुम खो रहे हो,
ज़माना जगा, हाय, तुम सो रहे हो ।हो।
कभी क्या थे, पर आज क्या हो रहे हो,
वही बेल हर बार क्यों बो रहे हो ?
असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
हृदय चोट खाए दबाओगे कब तक,
बने नीच यों मार खाओगे कब तक,
तुम्हीं नाज़ बेजा उठाओ कब तक,
बँधे बन्दगी यों बजाओगे कब तक ।तक। असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
नजूमी से पूछो न आमिल से पूछो,
रिहाई का रास्ता न क़ातिल से पूछो ।पूछो।
ये है अक़्ल की बात अक़्ल से पूछो
तुम्हें क्या मुनासिब है ख़ुद दिल से पूछो ।।पूछो॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
ज़ियादा न ज़िल्लत गवारा करो तुम,
ठहर जाओ अब वारा-न्यारा करो तुम ।तुम।
न शह दो, न कोई सहारा करो तुम,
फँसो पाप में मत, किनारा करो तुम ।।तुम॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
दिखाओ सुपथ जो बुरा हाल देखो,
न पीछे चलो जो बुरी चाल देखो ।देखो।
कृपा-कुंज में जो छिपा काल देखो,
भरा मित्र में भी कपट जाल देखो ।।देखो॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
सगा बन्धु है या तुम्हारा सखा है,
मगर देश का वह गला रेतता है ।है।
बुराई का सहना बहुत ही बुरा है,
इसी में हमारा तुम्हारा भला है ।।है॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
धराधीश हो या धनवान कोई,
महाज्ञान हो या कि विद्वान कोई ।कोई।
उसे हो न यदि राष्ट्र का ध्यान कोई,
कभी तुम न दो उसको सम्मान कोई ।।कोई॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
अगर देश ध्वनि पर नहीं कान देता,
समय की प्रगति पर नहीं ध्यान देता ।देता।
वतन के भुला सारे एहसान देता,
बना भूमि का भार ही जान देता ।।देता॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
उठा दो उसे तुम भी नज़रों से अपनी,
छिपा दो उसे तुम भी नज़रों से अपनी ।अपनी।
गिरा दो उसे तुम भी नज़रों से अपनी,
हटा दो उसे तुम भी नज़रों से अपनी ।।अपनी॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
न कुछ शोरगुल है मचाने से मतलब,
किसी को न आँखें दिखाने से मतलब ।मतलब।
किसी पर न त्योरी चढ़ाने से मतलब,
हमें मान अपना बचाने से मतलब ।।मतलब॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
कहाँ तक कुटिल क्रूर होकर रहेगा,
न कुटिलत्व क्या दूर होकर रहेगा ।रहेगा।
असत् सत् में सत् शूर होकर रहेगा,
प्रबल पाप भी चूर होकर रहेगा ।।रहेगा॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
भुला पूर्वजों का न गुणगान देना,
उचित पाप पथ में नहीं साथ देना ।देना।
न अन्याय में भूलकर हाथ देना,
न विष-बेलि में प्रीति का पाथ देना ।।देना॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
न उतरे कभी देश का ध्यान मन से,
उठाओ इसे कर्म से मन-वचन से ।से।
न जलाना पड़े हीनता की जलन से,
वतन का पतन है तुम्हारे पतन से ।।से॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
डरो मत नहीं साथ कोई हमारे,
करो कर्म तुम आप अपने सहारे ।सहारे।
बहुत होंगे साथी सहायक तुम्हारे,
जहाँ तुमने प्रिय देश पर प्राण वारे ।।वारे॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
प्रबल हो तुम्हीं सत्य का बल अगर है,
उधर गर है शैतान ईश्वर इधर है ।है।
मसल है कि अभिमानी का नीचा सर है,
नहीं सत्य की राह में कुछ ख़तर है ।।है॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
अगर देश को है उठाने की इच्छा,
विजय-घोष जग को सुनाने की इच्छा ।इच्छा।
व्रती हो के कुछ कर दिखाने की इच्छा,
व्रती बन के व्रत को निभाने की इच्छा ।।इच्छा॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
अगर चाहते हो कि स्वाधीन हों हम,
न हर बात में यों पराधीन हों हम ।हम।
रहें दासता में न अब दीन हों हम,
न मनुजत्व के तत्त्व से हीन हों हम ।।हम॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
न भोगा किसी ने भी दुख-भोग ऐसा,
न छूटा लगा दास्य का रोग ऐसा ।ऐसा।
मिले हिन्दू-मुस्लिम लगा योग ऐसा,
हुआ मुद्दतों से है संयोग ऐसा ।।ऐसा॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
नहीं त्याग इतना भी जो कर सकोगे,
नहीं मोह को जो नहीं तर सकोगे ।सकोगे।
अमर हो के जो तुम नहीं मर सकोगे,
तो फिर देश के क्लेश क्या हर सकोगे ।।सकोगे॥ असहयोग कर दो । दो। असहयोग कर दो ।।दो॥
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