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जगौनी / मैथिलीशरण गुप्त

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पड़े हो कब से पैर पसार!
करो अब और न अपना घात।
उठो, हे भारत, हुआ प्रभात ॥प्रभात॥
जगत को देकर शिक्षा-दान,
सहारा देंगे श्री भगवान।
बनेगी फिर भी बिगड़ी बात।
उठो, हे भारत, हुआ प्रभात। प्रभात॥
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