|रचनाकार=कबीर
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कस्तूरी कुँडल बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ.<br>
ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ..<br><br>
कस्तुरी कुँडली बसैप्रेम ना बाड़ी उपजे, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँप्रेम ना हाट बिकाय.<br>ऎसे घटि घटि राम हैंराजा प्रजा जेहि रुचे, दुनिया देखे नाहिँसीस देई लै जाय ..<br><br>
प्रेम ना बाड़ी उपजेमाला फेरत जुग गाया, प्रेम मिटा ना हाट बिकायमन का फेर.<br>राजा प्रजा जेहि रुचेकर का मन का छाड़ि, सीस देई लै जाय के मन का मनका फेर..<br><br>
माला फेरत जुग गायामाया मुई न मन मुआ, मिटा ना मन का फेरमरि मरि गया शरीर.<br>कर का मन का छाड़िआशा तृष्णा ना मुई, के मन का मनका फेरयों कह गये कबीर ..<br><br>
माया मुई न मन मुआझूठे सुख को सुख कहे, मरि मरि गया शरीरमानत है मन मोद.<br>आशा तृष्णा ना मुईखलक चबेना काल का, यों कह गये कबीर कुछ मुख में कुछ गोद..<br><br>
झूठे सुख को सुख कहेवृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, मानत है मन मोदनदी न संचै नीर.<br>खलक चबेना काल कापरमारथ के कारण, कुछ मुख में कुछ गोदसाधु धरा शरीर..<br><br>
वृक्ष कबहुँ नहि फल भखेसाधु बड़े परमारथी, नदी न संचै नीरधन जो बरसै आय.<br>परमारथ के कारणतपन बुझावे और की, साधु धरा शरीरअपनो पारस लाय..<br><br>
सोना सज्जन साधु बड़े परमारथीजन, धन जो बरसै आयटुटी जुड़ै सौ बार.<br>तपन बुझावे और कीदुर्जन कुंभ कुम्हार के, अपनो पारस लायएके धकै दरार..<br><br>
सोना सज्जन साधु जनजिहिं धरि साध न पूजिए, टुटी जुड़ै सौ बारहरि की सेवा नाहिं.<br>दुर्जन कुंभ कुम्हार केते घर मरघट सारखे, एके धकै दरारभूत बसै तिन माहिं..<br><br>
जिहिं धरि साध न पूजिएमूरख संग ना कीजिए, हरि की सेवा नाहिंलोहा जल ना तिराइ.<br>ते घर मरघट सारखेकदली, भूत बसै तिन माहिंसीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ..<br><br>
मूरख संग तिनका कबहुँ ना कीजिएनिन्दिए, लोहा जल ना तिराइजो पायन तले होय.<br>कदली, सीप, भुजंग-मुखकबहुँ उड़न आखन परै, एक बूंद तिहँ भाइपीर घनेरी होय..<br><br>
तिनका कबहुँ ना निन्दिएबोली एक अमोल है, जो पायन तले होयकोइ बोलै जानि.<br>कबहुँ उड़न आखन परैहिये तराजू तौल के, पीर घनेरी होयतब मुख बाहर आनि..<br><br>
बोली एक अमोल हैऐसी बानी बोलिए, जो कोइ बोलै जानिमन का आपा खोय.<br>हिये तराजू तौल केऔरन को शीतल करे, तब मुख बाहर आनिआपहुँ शीतल होय..<br><br>
ऐसी बानी बोलिएलघता ते प्रभुता मिले,मन का आपा खोयप्रभुत ते प्रभु दूरी.<br>औरन को शीतल करेचिट्टी लै सक्कर चली, आपहुँ शीतल होयहाथी के सिर धूरी..<br><br>
लघता ते प्रभुता मिलेनिन्दक नियरे राखिये, प्रभुत ते प्रभु दूरीआँगन कुटी छवाय.<br>चिट्टी लै सक्कर चलीबिन साबुन पानी बिना, हाथी के सिर धूरीनिर्मल करे सुभाय..<br><br>
निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय.बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय.. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं.<br>मुकताहल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत ना जाहिं..<br><br>