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07:27, 14 फ़रवरी 2017
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अपनों कपटकाल का , सपनों का , रिश्तों का था ऐसा याराना ।श्यामल युग है मैं भावों की त्रेता हूँ एक साथ जीवन में हरदम रहता था आना – जाना ।इनका रिश्ता सुखद,सुकोमल जल-मछली के जैसा था । अपना मधुबन पुष्प तो,सपना सुंदर तितली जैसा था । रिश्ते,अपने,सपने तीनों अच्छे साथी बनके रहते थे । कुसुम-भ्रमर तो कभी कोई दो दीपक-बाती रहते थे । फिर अपने ने रिश्ते के कानों में कुछ-2 बात कही ।सपना भी अपना ही था ना बात ये उनको याद रही ।रिश्तों ने , अपनों ने जब सपनों मैंने फूल नहीं साधे मैं शूलों का यूँ प्रतिकार किया ।सपनों ने अपनों से इस रिश्ते को भी स्वीकार किया ।अपनों से जब सपनों के रिश्ते टूटे चकनाचूर हुऐ ।तब वो सपने अपनों से , रिश्तों से इतना दूर हुऐ ।विक्रेता हूँ
अपनों से सपनों संविधान में आग लगा दो यहाँ निर्भया रोती है लुप्त दामिनी लोकतंत्र के बंधन की दूषित पगतल धोती है कहाँ मर गऐ आतंकी जो नाज़ुक डोरी जेहादी कहलाते हैं निर्दोषों का ख़ून बहाकर चिरबाग़ी बन जाते हैं आज बताओ कहाँ सुप्त हो क्या आडम्बर धारे हो मुझे बता दो मौन धरे अब किस मज़हब के प्यारे हो आज कहो क्यों अपना छप्पन इंची सीना छिपा रहे झाड़ू के तिनकों सी तुम नंगी कायरता दिखा रहे लुटी अचेतन आँखों सी पथराई नैया खेता हूँ मैंने फूल नहीं साधे मैं शूलों का विक्रेता हूँ मद्धम शीतल मलय पवन अब बारूदों की दासी है ।रिश्तों अधिकारों की सतरंगी दुनिया लालायित आशाऐं खूँ की प्यासी हैं अंतर्मन में भी कोरी-कोरी है ।जनमानस की पीड़ा का अम्बार भराअपनों इसी हृदय में मेरे भूखे बचपन के बिन सपना सपने जैसा लगता है ।हित प्यार भरा फिर भी रिश्ता सपने गली के निर्बल ढाँचे की चेहरे की झुर्री देख रहा बरसों से क्यूँ अपने जैसा लगता है ।आँगन की टूटी खटिया खुर्री देख रहा मुझे बताओ कैसे गुलशन बाग सींचने लग जाऊँ मुझे कहो कैसे बहनों का चीर खींचने लग जाऊँ अनललेख के तप्तभाव को मैं अपना स्वर देता हूँ मैंने फूल नहीं साधे मैं शूलों का विक्रेता हूँ नेत्रलहू की स्याही को तलवार बनाकर लिखता हूँ मैं शब्दों का शीतसुमन अंगार बनाकर लिखता हूँ चिपके पेटों को लखकर रोटी की बीन बजाता हूँ दर्पण बनकर मैं समाज को सत्यछबि दिखलाता हूँ मेरे अक्षर अक्षर में तुम एक प्रलय टंकार सुनो शब्दनाद पोषित कर देखो अमिट अनल हुंकार सुनो पीड़ाज्वार लखो तुम लुटती बाला की चीखें सुन लो बूढ़े बेबस आँसू से तुम अपना सकल हश्र बुन लो मैं समाज का एकमुखी घट जो लेता वो देता हूँ मैंने फूल नहीं साधे मैं शूलों का विक्रेता हूँ
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