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{{KKRachna
|रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक=|संग्रह=जो राख होने से बचे हैं अभी तक / ब्रजेश कृष्ण
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{{KKCatKavita}}<Poempoem>इन दिनों
अक्सर देखती है वह
पेडों को गुनगुनाते हुए