भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
दूबड़ी पूछ्यो - झरणां, तूं चनेक ही सिंचल्यो कोनी रवै, तूं पून को जायोड़ो है के?
झरणूं बोल्यो - भली पिछाण करी? मैं तो डूंगरां रै जायोड़ो हूं जका पसवाड़ो ही को फेरै नीं!
</poem>