भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
रूँखड़े परां पंखेरू एक एक तिणखलो चुग र आळो घाल्यों ! आँधी आई र आँख फरूकै जतै'क में आळै नै ले उड़ी । रूखड़ो कयो-आळो तो म्हारै डील पराँ हो तूं धींगाणै ही कियाँ अणखी ?
</poem>