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Kavita Kosh से
एक अपनी जमीं, एक ही आसमाँ
है हिमालय जहाँ विंध्य की श्रंखला श्रृंखला
गंगा-यमुना से शोभित है जिसका गला
जिसकी माटी को कहते हैं हम अपनी माँ