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|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
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वह चिड़िया जो-
 
चोंच मार कर
 
दूध-भरे जुंडी के दाने
 
रुचि से, रस से खा लेती है
 
वह छोटी संतोषी चिड़िया
 
नीले पंखों वाली मैं हूँ
 
मुझे अन्‍न से बहुत प्‍यार है।
 
वह चिड़िया जो-
 
कंठ खोल कर
 
बूढ़े वन-बाबा के खातिर
 
रस उँडेल कर गा लेती है
 
वह छोटी मुँह बोली चिड़िया
 
नीले पंखों वाली मैं हूँ
 
मुझे विजन से बहुत प्‍यार है।
 
वह चिड़िया जो-
 
चोंच मार कर
 
चढ़ी नदी का दिल टटोल कर
 
जल का मोती ले जाती है
 
वह छोटी गरबीली चिड़िया
 
नीले पंखों वाली मैं हूँ
 
मुझे नदी से बहुत प्‍यार है।
</poem>
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