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<poem>

मैं तुम्हें देखता ही रहता

नयनों में अविरल नयन डाल
छू अरुण अधर छवि-किरण-माल
पलकों में पल पल पुलक-जाल
साँसों में सौरभ वन बहता

वन-वन वसंत का अल्हड़पन
कण-कण में इठलाता यौवन
तुम चिर-नवीन, तुम चिर-नूतन
प्रति-रोम विकल, विह्वल कहता

क्षण-बद्ध युगों के चपल चरण
दृग-पुलिनों में अनजान किरण
रे भर जाती अनंत जीवन
मैं मधुर विकलता बन बहता
<poem>
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