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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=सीता-वनवास / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
<poem>

देख के आँसू प्रभु नयनों में
रोते हुए विकल पुरवासी लिपट गए चरणों में

हुआ हमारे ही कारण सब
जाने क्यों अनीति सूझी तब!
नाथ! न और सती सीता अब काटे आयु वनों में

दिया जिन्होंने माँ को लांछन
रक्खा केवल उनका ही मन!
देखा नहीं क्षोभ था, भगवन ! कितना प्रजाजनों में !

'कथा कुमारों ने जो गायी
सुनकर घोर विकलता छायी
धो दें यह कलंक दुखदायी स्वामी ! शेष क्षणों में '
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