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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=बूँदे - जो मोती बन गयी / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category: कविता]]
<poem>
जब मेरे वस्त्रों की चमक लुप्त हो चुकी है,
मेरे द्वार पर यह डोली कैसी रुकी है!
ओ मेरे सपनों के राजकुमार!
क्या तुझे मेरी याद अब आयी है!
हाय! तूने कितनी प्रतीक्षा करवायी है!
और आया भी कब! जब मेरी मेंहदी का रंग उतर गया है!
मेरा मोतियों का हार टूटकर बिखर गया है!
<poem>
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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=बूँदे - जो मोती बन गयी / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: कविता]]
<poem>
जब मेरे वस्त्रों की चमक लुप्त हो चुकी है,
मेरे द्वार पर यह डोली कैसी रुकी है!
ओ मेरे सपनों के राजकुमार!
क्या तुझे मेरी याद अब आयी है!
हाय! तूने कितनी प्रतीक्षा करवायी है!
और आया भी कब! जब मेरी मेंहदी का रंग उतर गया है!
मेरा मोतियों का हार टूटकर बिखर गया है!
<poem>