{{KKRachna
|रचनाकार=बालकवि बैरागी
}} <br /><br />झर गये पात<br /> बिसर गई टहनी <br />करुण कथा जग से क्या कहनी ?<br /><br />नव कोंपल के आते-आते<br />टूट गये सब के सब नाते <br />राम करे इस नव पल्लव को<br />पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी <br /><br />झर गये पात <br />बिसर गई टहनी <br />करुण कथा जग से क्या कहनी ?<br /><br />कहीं रंग है, कहीं राग है <br />कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है<br />और धूसरित पात नाथ को <br />टुक-टुक देखे शाख विरहनी<br />
झर गये पात <br />बिसर गई टहनी <br />करुण कथा जग से क्या कहनी ?<br /><br /> पवन पाश में पड़े पात ये <br />जनम-मरण में रहे साथ ये<br />"वृन्दावन" की श्लथ बाहों में <br /> समा गई ऋतु की "मृगनयनी" <br />
नव कोंपल के आते-आतेटूट गये सब के सब नाते राम करे इस नव पल्लव कोपड़े नहीं यह पीड़ा सहनी झर गये पात बिसर गई टहनी करुण कथा जग से क्या कहनी ? कहीं रंग है, कहीं राग है कहीं चंग है, कहीं फ़ाग हैऔर धूसरित पात नाथ को टुक-टुक देखे शाख विरहनी झर गये पात बिसर गई टहनी करुण कथा जग से क्या कहनी ? पवन पाश में पड़े पात ये जनम-मरण में रहे साथ ये"वृन्दावन" की श्लथ बाहों में समा गई ऋतु की "मृगनयनी" झर गये पात <br />बिसर गई टहनी <br />करुण कथा जग से क्या कहनी ?<br />