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बूढां रो अपमान कर्यां सूं, मिनख जमारो खाख हुवै।
बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।।
इक दिन सबनै बूढो होणो, इणमें मीन न मेख सुणोे। चार दिन रो जोश जवानी, पछो बुढापो पेख गुणोे।। शैशव, बाळपणो’र जवानी, अगलो आश्रम दे ज्यावै। ओ बुढापो कछु नहीं देवै, जीव तकातक ले ज्यावै। मिटसी महल, ठहरसी गाडी, आं रिपियां री राख हुवै। बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 01।।
बूढा अनुभव समद अपारा, ज्ञान-गंग री धारा है। बूढा मेढ कडूंबै री है, बूढा इमरत झारा है। बूढा मूरत महादेव री, जोगमाया री जोती है। बूढा वीणा मां सारद री, बूढा उजळा मोती है। बूढां री आसीस फळै है, अेक-अेक रा लाख हुवै। बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 02।।
रात-दिवस बेबस बतळावै, लाचारी री आंख लियां।
बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 03।।
जिकण ठौड़ है आज बूढिया, कालै थूं अर म्हैं होस्यां। अै दिन याद आवैला मरवण, रह-रह-रह दोनूं रोस्यां।
टाबर टोगडि़या टाळैला, आपां आंसू ढळकास्यां।
खाय न कुत्ता खीर कामणी, हाथ मसळता पछतास्यां।
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