Changes

{{KKCatGeet}}
<poem>
मेरी आँखों के नीर तुम्हे तुम्हें
बहने का है अधिकार नहीं।
जो तुमको निधि कहकर रोके
विचलित उर-अम्बुधि-लहरों में
है को विरह व्यथा का ज्वार बहुत,
दुख से अकुलाए अधरों में
है दारुण-दुखद पुकार बहुत।
करुणा खोएगी जीवन में।
जिस उर में प्यार बसा प्रिय का
अब भरो वहाँ अंगार नहीं।
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,612
edits