भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
/* छतीसगढ़ी रचनाएँ */
{{KKCatChhattisgarh}}
====छतीसगढ़ी रचनाएँ====
मलरिहा के छत्तीसगढ़ी **कुण्डलिया**
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
-
नोनी बाबू एक हे, झिन कर संगी भेद !
रुढ़ीवादी बिचार ला, लउहा तैहा खेद !!
लउहा तैहा खेद, समाज म सुधार आही!
पढ़ही बेटी एक, दूइ घर सिक्छा लाही !!
मान मिलनके गोठ, भ्रुणहत्या कर काबू !
भेज दुनो ल एकसंग, इसकुल नोनी बाबू!!
-
पुस्तक डरेस लानदे, बिसादे अउ सिलेट !
बरतन चउका झिनकरा, पढ़ाई ल झिन मेट !!
पढ़ाई ल झिन मेट, सिक्छा के अधिकार दे!
बेटी बने पढ़ाव, अउ चरित सन्सकार दे !!
आही सिक्छा काम, दुख-दरद देही दस्तक !
मनुस छोड़थे संग, फेर नइछोड़य पुस्तक !!
-
बेटी पढ़के बाँटही, गांव गांव म गियान !
परकेधन झिन मान रे, इही देस के जान !!
इही देस के जान, पढ़लिख नवाजुग लाही !
रुकही अतियाचार, कुकरमी दूर हटाही !!
मलरिहा कहत रोज, पुस्तक धरादे बेटी !
अबतो जाग समाज, सिक्छित बनादे बेटी !!
-
कहाँले बहूँ लानबो, परगे हवय अकाल ।
बेटा बेटा सब गुनय, इही जगत के हाल ।।
इही जगत के हाल, कोख भितरी मरवाथे ।
गुनले अपन बिचार, बेटी रोटी खवाथे ।।
कहत मलरिहा गोठ , खुदके माथा घुसाले ।
छोड़ देहि सनसार, दाई पाबे कहाँले ।।
-
नोनी बहनी नोहय ग, ए जिनगी के बोझ ।
टूरा होथे मनचला, कोनो रहिथे सोझ ।।
कोनो रहिथे सोझ, दाई - ददा ल सताथे ।
काम बुता ढेचराय , मुड़ी धरके रोवाथे ।।
मलरिहा कहत गोठ, कानले निकाल पोनी ।
कब समझबे मनूस, भविस्य हमर हे नोनी ।।
*********************************
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
====गीत====
* [[इही जिनगानी रे / मिलन मलरिहा]]