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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह= निशा निमंत्रण / हरिवंशराय बच्चन
}}
कोई पार नदी के गाता! भंग निशा की निरवता नीरवता कर,<br>
इस देहाती गाने का स्वर,<br>
ककडी के खेतों से उठउठकर, आता जमुना पर लहराता!<br>
कोई पार नदी के गाता!<br>
होंगे भाई-बंधु निकट ही,<br>
कभी सोचते होंगे यह भी,<br>
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों को सुन से सुख पाता!<br>
कोई पार नदी के गाता!<br>
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