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आवृति... पुनरावृति निरीह बिकल राशन मेई भौतिकीय शब्द बुध्दिगर बहकल भाषण मेबदलि देलक नहि किछु अपने रान्हब एडवांस होइत मनोवृतिक भ्रम केँ..माय धरिणी छलीह पहिने गोल आब विज्ञान अंडा जकाँ मानैछ सहमत छी...की अंडाकार भूमि पर चलला सँफेर ओहि ठाम पहुँचब नहिककरो रान्हल खाएब जाहि ठाम सँ प्रांजल सुआद ल' मुंह बिचकाएब कयने छलहुँ यात्रा आरम्भ,,,एहने सन बहत्तरि हाथक कहबाक माने अंतरी बला बांधवक मुखे आगाँ सोचूकटाह फझ्झतिक डरें कोनो छोह नहि सबहक मोन केँ जुरबैत रहलहुँ नहि संताप नहि विलाप नहि प्रलाप परक लेल गमगम बनबैत रहलहुँ मुदा! संगहि संग अपना बेरि भनसाघर सुन्न पाछाँ सेहो देखू नहि किछु बचल बासन मे..युगधर्मक आवृतिक दिशनहायब त' पानिये काज सँबेसी आलोचना तखन...सबहक श्रृंग प्रत्यालोचनाअपन संस्कारक पानि केँ पोछिमूल दिशि नहि किनको ध्यान किए करैत छी उत्सर्ग आनक गुण सुनि भेलथि अकानपसेना जकाँ ..मात्र अपनहि लेल छन्हि संज्ञान एक्वागार्ड लगा लेलहुँ कोना क' कहबै मिथिला महान?मुदा! मूलजल हमरे कएल टा बुझू नीक आएत कतय सँ? दोसरक वरखा वा माटिये सँ ने गाछ- वृछ लगाउइन्द्र कृति केँ बजाउ टांगब सीक एक हाथ लिअ आगाँ भागब त'दोसर दिअचट लेब झीक नहि सकब त' उगलब बीख ओहि लेल छैक जरूरी पात पात पर हमरे राज बाध-बोन गाम घर ..कहियो ने सकारब अहाँक काज थ्रीटियरक बोगी जकाँहमरे गीत आ हमरे साज फ्लैट नहि...हमरे संगीत हमरे आवाज चौबटिया निसहरा सुरहा अखड्डा कहू पंचवटी हो वा नरियाएकपरिया भीठ आ धनहा जोगाऊ पञ्चकोशी सँ पूब खगडिया पहिने आन कहैत छल टाट फटक साङ्गः संग बड़ेरीबिहारक वासी कमला कात सँ घाट बहेड़ी मरुआक पोषीहमरे मंदिर हमरे गह्वर रौ बुड़िबक सभ ह'म विदेह राजक छी हिटलर दुर्लभ भकखनो दिव्य त' गेल आब कखनो निरंकार वेअह हमर बिहारक मरुआ कखनो परम ब्रह्म साकार तोहर रागी सुगरक रक्षक कैलोरीक भक्षक...सतर्क भअनुगामी बनब त' गामो केँ सोझराउ भेंटत मोजर अपन देह कान-नेह गेह बचाउई आवृतिक संकेतन हमर देल नहि प्रकृतिक लक्षण जाहि ठाम सँ भेल छल आदि जा रहल ओहि ठाम मने अंत! विखंडन!! घुसब बनि अदृश्य कनगोजर
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