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देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
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