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{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
यूँ खुश तो क्या था, मगर गमजदा नहीं था मैं,
तुम मुझे जो समझ रहे थे, वो नहीं था मैं |
मेरी बर्बाद दास्ताँ , है कोई ख़ास नहीं,
जब मेरा घर जला, तो आस पास ही था मैं |
चंद लम्हे, जो मुझे जान से भी प्यारे थे,
उनकी कीमत पे मैं बिका,मगर सही था मैं |
दुश्मनो को भी सजा, प्यार की ऐसी न मिले,
मेरी चाहत थी कहीं और, और कहीं था मैं |
तुमने बेकार मेरा क़द बढा दिया इतना,
फलक तो क्या जमीन पर भी कुछ नहीं था मैं |
घर उदासी ने बसाया है, जहां पर आकर,
शाम तक उस जगह ‘आनंद’ था, वहीं था मैं |
</poem>
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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
यूँ खुश तो क्या था, मगर गमजदा नहीं था मैं,
तुम मुझे जो समझ रहे थे, वो नहीं था मैं |
मेरी बर्बाद दास्ताँ , है कोई ख़ास नहीं,
जब मेरा घर जला, तो आस पास ही था मैं |
चंद लम्हे, जो मुझे जान से भी प्यारे थे,
उनकी कीमत पे मैं बिका,मगर सही था मैं |
दुश्मनो को भी सजा, प्यार की ऐसी न मिले,
मेरी चाहत थी कहीं और, और कहीं था मैं |
तुमने बेकार मेरा क़द बढा दिया इतना,
फलक तो क्या जमीन पर भी कुछ नहीं था मैं |
घर उदासी ने बसाया है, जहां पर आकर,
शाम तक उस जगह ‘आनंद’ था, वहीं था मैं |
</poem>