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सोच विचारों के जहाँ, गिरते कट कर हाथ।
हम ऐसे माहोल में भी, रहते हैं साथ।।
 
करता हूँ बाहर इसे, रोज़ पकड़ कर हाथ।
घर ले आता है समय, मगर उदासी साथ।।
 
मरने की फ़ुर्सत मुझे, मत देना भगवान्।
मुझे खोलने हैं कई ,अब भी रोशनदान।
</poem>
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