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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
निपट अकेलेपन में भी
कोई न कोई
साथ होता है,
इंसान के बस में न साथ है
न तनहाई,
बेबस इंसानों से खेलना
न जाने किसका शगल है
जिसे कुछ लोग
‘लीला’ कहते हैं !
</poem>
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