भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
षड्गषपरु कालीका दीनु । चौरट्ठी चौसट्ठी जोगीनी माईये ।।आफुत सोह्रै विस्नुलोकमे जगस्त्र कालीपिजारीये ।।हाहादेवी.।।१।।एक मुर्ती चार भुजा सहस्त्र नाम भवानीये ।।सकर कजजा धनुक धारीनी दुतीपाषन्जीनी नामवे ।।हाहादेवी.।।२।।त्रीतीये भुजा कवल सवह्रै चौथी बान जो धारीय चन्दीकारुपले ।।दैत्यमारीनी रक्त पीवनेती कालीके ।।हाहादेवी.।।३।।दुर्गारुपले पृथीवीरोकीनी धन्नेइसोरीमाइये ।।तुमारो दा ………………………………(इत्यादि अपूर्ण ) ।।४।।
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
9,789
edits