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|रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग'
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हमने जो भोगा सो गाया ।गाया।अकथनीयता को दी वाणी,वाणी को भाषा कल्याणी;कलम कमण्डल लिये हाथ में,दर-दर अलख जगाया।हमने जो भोगा सो गाया।
अकथनीयता को दी वाणीवाणी को भाषा कल्याणीकलम कमण्डल लिये हाथ मेंदर-दर अलख जगायाहमने जो भोगा सो गाया । सहज भाव से किया खुलासा,आँखों देखा हुआ तमाशा;कौन करेगा लेखा-जोखा,क्या खोया, क्या पाया?हमने जो भोगा सो गाया । पीड़ओं के परिचायक हैंऔर भला हम किस लायक हैंअन्तर्मठ की प्राचीरों मेंअनहद नाद गुँजायाहमने जो भोगा सो गाया ।गाया।
पीड़ाओं के परिचायक हैं,
और भला हम किस लायक हैं;
अन्तर्मठ की प्राचीरों में,
अनहद नाद गुँजाया।
हमने जो भोगा सो गाया।
</poem>