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बुलबुल का गीत
तपी आंच पर भुनता है,
चकई इंगोरा निगालतीं निगलतीं हैं,
कोयलें बिकती हैं.
फूल पिस्ता पिसता है,पत्थर भी डूब दूब के गीतों को सहता है,
मरुवन में झरनों का गीत भी सिसकता है,
कोयलें बिकतीं हैं