भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बसन्त / श्रीस्नेही

2,277 bytes removed, 08:06, 14 जुलाई 2017
पी पी पपीहरी, पपीहरा केॅ टेरै
उड़ी ऐलै लेॅ पियबा आहार बंसुरिया बाजी रहै
 
मन भागै पुरबी बहियार/राम शर्मा अनल
 
मन भागै पुरबी बहियार लगातार, आज
भोर जहां सैन खेलै, मौसम बेचैन घुरे
परसोखा देखी केॅ, गीत जहां गाबै चिरै
बगुला के पंक्ति जहाँ ऊड़ै हजार लगातार, आज
खेत में घोंघीं घूमै, आरी बूलै छाता
ताड़ॅ पर झूला झूलै, बाया रॅ खोता
धरती विधाता खाय सतुवा-अचार लगातार, आज
बांध करै ठांय-ठांय, नदी गुंगुंवाबै छै
कमलॅ रॅ फूल जहाँ, भांसी-भांसी आबैं छै
बकरी धोरैया गलां सेवड़ा रॅ हार लगातार, आज
झोंखीं सें तित्तर बोलै, आरो पर कांकुर-माकुर
चन्ना-पोंठा पानी चढ़ै, राज माबै दादूर-झिंगुर
बुतरू बच्चा बंसी जहां खेलै पथार लगातार, आज
भैंस हेलैपानी में, सैरा पारै माछॅ झांगुर
बकरी घुरै खुट्टा में, गाय जहां करै पागुर
पपीहा पिया-पिया रटै नद्दी रॅ पार लगातार आज-
पोखर करै झलर-मलर पानी परै टिपिर-टिपिर
करमी-सरोची हिलै, हवा वहै सिसर-सिसर
मेघ जहां क्यारी-क्यारी बनै फुहार लगातार, आज
धान रानी अंगना में, छाकै सधौरी
पिया कीया लैक ऐलै, अंगिया पटोरी
सांवरी बदरिया जहां गाबै मल्हार लगातार, आज।
</poem>