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|संग्रह=लकड़बग्घा हँस रहा है / चन्द्रकान्त देवताले
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सुख से पुलाकने से नहीं
रबने-खटने के थकने से
पर वह तो
माथे की सलवटें तक
नहीं मिटा पाती सोकर भी.
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