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|रचनाकार=अर्चना कुमारी
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|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
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<poem>
दाल छौंकते हुए
तेजपत्ता डालते ही
भभक कर उछला तेल
ऊंगलियां भींग गयी

इसी बीच सब्ज़ी ने ताकीद कर दी
अपने पकने की
चावल का कुकर उतारते ही
तवा मुस्कुरा उठा
गोल गोल रोटियों के ईश्क में

व्यवस्थित होते भूख के साथ ही
रसोईघर चमक उठा
थोड़े फुरसत के पलों में
याद आया हाथ का जलना
फफोले चुप रहना जानते हैं
वक्त की नजाकत भांपकर।
</poem>
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