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महाकाव्य / अर्चना कुमारी

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|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
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<poem>
एक सवाल है-
क्या तुम ज़िन्दा हो!

रुको पलट कर मत देखो
डायरी के पन्ने

सांसों की गिनतियां
कोई नही लिखता

अतीत की घुमावदार पगडंडियां
भविष्य के किसी शहर नहीं जाती

वर्तमान एक अख़बार है
सुबह का
जिसमें दर्ज पल-पल की खबर
बासी पड़ती जाती है आने वाले घंटों में

तुम्हारी प्रतीक्षा
एक प्रतिप्रश्न है प्रश्न से
उत्तर लम्बी यात्रा पर है

समय की वीथियों में
तुम भ्रमित हो
सब शाश्वत चिरंतन है
नश्वरता में समाहित है
नवीन रचनाओं का उत्स...

महाकाव्य फिर लिखे जाएंगे।
</poem>
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