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11:05, 27 अगस्त 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
गली जहां ख़त्म होती है
ठीक उसे बंद करते हुए
एक घर हो मेरा
जहां से आगे जाने का रास्ता न हो
तुम लौटो वहां से अगर
तो उम्र भर टंगी रहे
तुम्हारी पीठ पर
मेरे घर की आंखें
कि चुभन से तंग आकर
रुख मोड़ लो आखिरी बार
उस घर की तरफ
जहां से बंद हो जाए
लौटने के भी रास्ते।
</poem>
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