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खुद से हीएक रात के गहरे पहलू मेंडरने लगी हूं आजकलएक मासूम कली का मुस्कानाकि न जाने कबखींच के आंचल का कोनामोहब्बत मांगू तोजोर जोर हंसते जानाजारी हो कोई अदालती फरमान€या जानोगे दुनिया वालेदस्तावेजों में जिक्र होफिर से ब‘चा बन जानामेरी नादानियों काकि उम्र की ऊंची चौखट परमेरी मासूमियत करार कर दी जाएभूल गये बचपनगुनाहगारकोरे कोरे सावन कीकि कब बचपने को बेवकूफीहरी चूडिय़ांकह दिया जाएगाभरे जेठ की पहली बूंदऔर कह दिया जाएगा शातिर मुझेसौंधी धरतीतल्ख भाषाएंकोयल कूके बाग-बाग...सुर मीठेबोलता हुआ अजनबीनयी नवेली दुल्हनियांकभी अपना रहा है शायदपायल की छनछनये आखिरी गुनाह मेराकौन जाने...किस विधि से रीझते प्रीत नयनजिस पर चीख रहे हो तुमकैसे बांधू चंचल मनमुझे डर लगता हैउतान तरंगों के राजासन्नाटों सेकैसे बिंधूं मन चितवनचीखों सेहुं सजल चपल अल्हड़ वन्या चुप्पी सेसीधी सी भोली कन्यातल्खियों€या जानू कैसे मान धरूंप्रेम से...।न जानूं कैसे प्रिय कहूं!
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