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जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्बू के मकाँ कैसे हैं ।।हैं।
ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं ।।हैं।
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहां कैसे हैं ।।हैं।
मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं ।। जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं ।।हैं।
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