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Kavita Kosh से
अपने कमरे में लेटा पोस्टमैन है
जो नेरूदा को पहुंचाता पहुँचाता था डाक
जैसे आवाज़ करती है सुने जाने का इंतज़ार
जैसे दृश्य से जुड़ा होता है दृष्टि का इंतज़ार
घर से निकली बेटी का मां माँ करती है जैसे
वैसी ही बेचैनी
कि आपके पास इतनी महिलाओं की चिट्ठी आती है
कि मेरा भी मन करता है कवि बन जाऊंजाऊँ
नेरूदा के भीतर जागा होगा पिता
और उंगली थमा ले गए होंगे समंदर तक
इस शख़्स में जो थकान के बाद भी भटकता है बिस्तर पर
भीतर कहीं टपकता है जल या आंख आँख का नल
जिसके पास रोज़ गट्ठरों में पहुंचती पहुँचती हो चिट्ठी
वह क्यों नहीं देता उसकी चिट्ठी का जवाब
जब आप किचन में नहीं होते
जब आपके पास क़लम नहीं होता
रिकॉर्डर में डाला लहरों का कलरव
उस धुन को जो कंपाती कँपाती थी नेरूदा के होंठ
और सबसे अंत में जो तुम्हारी आवाज़ थी
यह उनके देश में लोकतंत्र की मृत्यु के कारण बनी
उनकी सबसे प्यारी चिडि़या के पंख नुंच नुँच जाने के कारण
दरअसल
एक अन्याय से हुआ था वहां वहाँ विस्फोट
और उतना टुकड़ा प्रायश्चित कर रहा है
पोस्टमैन= जब नेरूदा को चीले से निष्कासित किया गया था और वह भूमध्य सागर के एक द्वीप में रह रहे थे, तब यह पोस्टमैन उनके साथ था। नेरूदा को के नाम क्विंटल-क्विंटल डाक आती थी। डाकखाना डाकख़ाना परेशान था। उसने खासकर ख़ासकर नेरूदा के लिए इस पोस्टमैन को नियुक्त किया। नेरूदा से अच्छी घनिष्ठता हो जाने के बाद वह भी कविताएं कविताएँ लिखने लगा। एक दिन नेरूदा उस द्वीप से चले गए। पोस्टमैन उन्हें खत ख़त लिखता रहा, पर कभी जवाब न आया। काफी काफ़ी समय बाद उसे चिट्ठी मिली, जो कि नेरूदा के सचिव ने लिखी थी। महाकवि उस द्वीप पर अपने घर में कुछ चीजें चीज़ें भूल आए थे और चाहते थे कि उनका दोस्त पोस्टमैन उन्हें वे चीजें चीज़ें भेज दे। पोस्टमैन उनके घर गया। उसे वहां वहाँ एक टेपरिकॉर्डर भी मिला। उसमें उसने वे तमाम आवाजें दर्ज दर्ज़ कीं, जो नेरूदा को पसंद थीं। चीजें चीज़ें भेजने से पहले ही पोस्टमैन ने नेरूदा के बारे में एक कविता लिखी। स्थानीय स्तर पर काफी वह कविता काफ़ी पसंद की गई। उसे माद्रिद से बुलावा आया, उस कविता को पढ़ने के लिए। सभा में वह मंच पर पहुंचकर पहुँचकर कविता पढ़ता, इससे पहले भगदड़ मच गई और वह मारा गया। उसकी मौत के कुछ दिन बाद ही नेरूदा उस द्वीप पर लौटे, जहां जहाँ उनके लिए सिर्फ सिर्फ़ दुख और पछतावा बचे थे।