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तख़्ती / निधि सक्सेना

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<poem>
देखो
तुम्हारे घर को किस करीने से
झाड़ा बुहारा

चौका किया
चौक पूरे
आँगन महकाया
दीवार पर मांडने बनाये
ड्योढी पर अल्पना सजाई
बंदनवार बांधे

सुनो..अबकी बार दरवाज़े पर टांगने के लिए
तख़्ती बनवाओ
तो अपने नाम के साथ
मेरा भी नाम जोड़ना.
</poem>
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